Hello friends जैसा की आप सभी जानते हैं ,भारत में हॉकी का नाम लेते ही हमारे ज़हन में मेजर ध्यानचंद, बलबीर सिंह, धनराज पिल्लै और 1975 का वर्ल्ड कप जीत जैसे सुनहरे पल ताज़ा हो जाते हैं। एक समय था जब हॉकी को भारत की पहचान माना जाता था और दुनिया में भारतीय टीम का दबदबा था। 1928 से 1956 तक के ओलंपिक खेलों में भारत ने लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर जो इतिहास रचा, वह आज भी बेजोड़ है।भारत में हॉकी का भविष्य | चुनौतियां और अवसर लेकिन समय के साथ हॉकी की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई। क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता, बदलते खेल प्रारूप और आधुनिक सुविधाओं की कमी ने इस खेल को पीछे धकेल दिया।
फिर भी, पिछले कुछ वर्षों में भारतीय हॉकी ने धीरे-धीरे अपने पुराने रंग में लौटने की शुरुआत की है। टोक्यो ओलंपिक 2020 में पुरुष टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीतकर पूरे देश को गर्व का मौका दिया, वहीं महिला टीम ने भी अपने शानदार प्रदर्शन से दिल जीत लिया। अब सवाल यह है कि आगे का रास्ता कैसा है, कौन सी चुनौतियां हैं और किन अवसरों को भुनाकर भारत हॉकी में फिर से नंबर वन बन सकता है।

1. भारत में हॉकी की मौजूदा स्थिति
आज के समय में भारतीय हॉकी की स्थिति पहले से काफी बेहतर है। पुरुष टीम टॉप 5 विश्व रैंकिंग में जगह बनाए हुए है और महिला टीम भी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है। युवा खिलाड़ियों में फिटनेस और स्किल्स पर खास ध्यान दिया जा रहा है, साथ ही विदेशी कोचों और आधुनिक ट्रेनिंग पद्धतियों का इस्तेमाल हो रहा है। प्रो लीग जैसे टूर्नामेंट्स से खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का अनुभव मिल रहा है।
इसके बावजूद, अभी भी हॉकी की लोकप्रियता क्रिकेट जैसी नहीं है। देश के बड़े हिस्से में लोग केवल बड़े टूर्नामेंट्स के दौरान ही हॉकी को याद करते हैं। अगर हॉकी को फिर से “नेशनल पैशन” बनाना है तो इसे ग्रासरूट लेवल से मज़बूत करना होगा।
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2. हॉकी के सामने मौजूद चुनौतिया
a) बुनियादी ढांचे की कमी
भारत में कई जगह हॉकी खेलने के लिए आधुनिक एस्ट्रो टर्फ मैदान नहीं हैं। गांव और छोटे कस्बों में खिलाड़ी अब भी मिट्टी के मैदान पर खेलते हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिंथेटिक टर्फ जरूरी है। इससे खिलाड़ियों के प्रदर्शन और चोटों पर असर पड़ता है।
b) फंडिंग और स्पॉन्सरशिप की कमी
क्रिकेट के मुकाबले हॉकी में स्पॉन्सरशिप और ब्रांड निवेश बेहद कम है। खिलाड़ियों को अच्छे ट्रेनिंग कैंप, डायट और उपकरणों के लिए अधिक वित्तीय मदद की जरूरत है।
c) क्रिकेट का दबदबा
भारत में क्रिकेट को सबसे ज्यादा मीडिया कवरेज और दर्शक मिलते हैं। हॉकी को मुख्यधारा में लाने के लिए मीडिया और प्रसारण प्लेटफॉर्म को आगे आना होगा।
d) कोचिंग और ट्रेनिंग
हालांकि विदेशी कोच लाए जा रहे हैं, लेकिन ग्रासरूट लेवल पर प्रशिक्षित कोचों की कमी है। गांव और स्कूल स्तर पर कोचिंग को पेशेवर और आधुनिक बनाने की जरूरत है।
e) खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा
कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी आर्थिक मजबूरी के कारण खेल छोड़ देते हैं। उन्हें स्थायी नौकरी, बीमा और वित्तीय सहायता मिलना जरूरी है ताकि वे खेल पर पूरी तरह ध्यान दे सकें।
3. हॉकी में मौजूद अवसर
a) ओलंपिक और विश्व स्तर पर शानदार प्रदर्शन
टोक्यो ओलंपिक और एशियन गेम्स में अच्छे प्रदर्शन के बाद हॉकी के प्रति लोगों की दिलचस्पी फिर से बढ़ी है। यह हॉकी इंडिया के लिए एक सुनहरा मौका है कि इस लोकप्रियता को लंबे समय तक बनाए रखा जाए।
b) लीग और घरेलू टूर्नामेंट
हॉकी इंडिया लीग (HIL) जैसे टूर्नामेंट खिलाड़ियों को न सिर्फ पैसे कमाने का मौका देते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ खेलने का अनुभव भी प्रदान करते हैं। इसे फिर से शुरू किया जाए तो हॉकी को बड़ा फायदा हो सकता है।
c) डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल
सोशल मीडिया, YouTube और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के जरिए हॉकी के मैच और खिलाड़ियों की कहानियों को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। इससे युवाओं में हॉकी के प्रति आकर्षण बढ़ेगा।
d) सरकारी योजनाएं और CSR
केंद्र और राज्य सरकारें ‘खेलो इंडिया’ जैसे कार्यक्रम चला रही हैं। कॉर्पोरेट कंपनियां भी CSR (Corporate Social Responsibility) के तहत हॉकी के लिए फंडिंग कर सकती हैं।
e) महिलाओं की हॉकी का उभार
महिला टीम के बढ़ते प्रदर्शन से हॉकी को एक नया चेहरा मिला है। इसमें निवेश करके भारत महिला हॉकी में भी शीर्ष पर पहुंच सकता है।
4. हॉकी को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी कदम
1) ग्रासरूट प्रोग्राम को मजबूत बनाना
गांव, कस्बों और स्कूलों में हॉकी अकादमियां खोलनी होंगी और एस्ट्रो टर्फ मैदान उपलब्ध कराने होंगे।
2) लीग सिस्टम को बढ़ावा देना
IPL की तरह हॉकी में भी मजबूत और लोकप्रिय लीग होनी चाहिए, जिससे खिलाड़ियों की कमाई और पहचान दोनों बढ़ें।
3) मीडिया और प्रचार
हॉकी के मैचों का प्रसारण प्राइम टाइम में होना चाहिए और खिलाड़ियों की कहानियों को डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्मों के जरिए लोगों तक पहुंचाना चाहिए।
4) खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा
खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी, बीमा, पेंशन और वित्तीय मदद देकर उनका भविष्य सुरक्षित करना होगा।
5) अंतरराष्ट्रीय ट्रेनिंग और टूर
टीमों को साल भर में कई बार विदेशी दौरों पर भेजना चाहिए ताकि वे विभिन्न परिस्थितियों में खेलने के आदी हो सकें।
5. हॉकी का भविष्य : उम्मीदें और संभावनाएं
अगर इन चुनौतियों को सही समय पर दूर कर लिया गया और मौजूदा अवसरों का सही इस्तेमाल किया गया तो भारत हॉकी में फिर से स्वर्णिम युग देख सकता है। भारतीय खिलाड़ियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत है सही दिशा, आधुनिक सुविधाओं और निरंतर समर्थन की।
युवाओं में हॉकी का क्रेज बढ़ाने के लिए इसे स्कूल और कॉलेज स्तर पर अनिवार्य खेल के रूप में शामिल किया जा सकता है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीत मिलने के साथ-साथ देश के भीतर भी खेल संस्कृति को मजबूत करना होगा।
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टोक्यो ओलंपिक के बाद मिली सफलता इस बात का संकेत है कि अगर हम सही रणनीति और निवेश करें तो 2028 लॉस एंजिल्स ओलंपिक या 2032 ब्रिस्बेन ओलंपिक में भारत एक बार फिर हॉकी का बादशाह बन सकता है।
conclusion: भारत में हॉकी का भविष्य | चुनौतियां और अवसर
हॉकी केवल एक खेल नहीं, बल्कि भारत की गौरवशाली विरासत का हिस्सा है। कभी यह खेल हमारे लिए वैश्विक पहचान था, और आज भी इसमें वही क्षमता है कि यह हमें फिर से दुनिया के शीर्ष पर पहुंचा दे। लेकिन इसके लिए सरकार, हॉकी फेडरेशन, खिलाड़ियों, मीडिया और जनता—सभी को मिलकर काम करना होगा। चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन अवसर उससे भी बड़े हैं।
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